जब मेरा विमान मुंबई के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की ओर मुड़ा और उतरना शुरू हुआ, तो मेरी छोटी गोल खिड़की से एकअनोखा दृश्य मेरी आँखों के सामने प्रकट हुआ। मैंने देखा कि नीले त्रिपाल से ढके हुए झोंपड़ों का विशाल समुद्र जैसे हवाईअड्डे पर चढ़ा चला आ रहा है, मानो हवाई अड्डे की कमज़ोर सी दीवार ने निकटवर्ती अनौपचारिक बस्तिओं की सुनामी कोरोक रखा हो। नीले रंग के वह सर्वव्यापी जलरोधक त्रिपाल, जो मुंबई नगर की पहचान बन गये हैं, कष्टदायक वार्षिकमॉनसून के मौसम में आम आदमी के घर को तेज़ बारिश की मार से बचाते ही नहीं हैं, शहर में व्याप्त असमानताओं काप्रतीक भी हैं।
हवाई जहाज़ के नीचे उतरने के बाद, ज़मीनी स्तर पर, एक दूसरी ही वास्तविकता मेरे सामने आई। मुंबई में रहकर कामकर रहे एक नगर नियोजक के रूप में मैंने यह पाया कि, लोकप्रिय संचार माध्यमों में दिये गये वर्णन के विपरीत, विभिन्नअनौपचारिक बस्तियों के सभी घर उस प्रकार के कच्चे झोंपड़े नहीं होते जैसे मैंने हवाई अड्डे की सीमा से लगे हुए देखे थे।किसी अनौपचारिक बस्ती के एक मोहल्ले में निर्मित घर जहां एक ओर सस्ती निर्माण सामग्री से बने कमज़ोर आवास होसकते हैं, वहीं दूसरी ओर ईंट और सीमेंट से निर्मित किराए पर उठ सकने वाले मज़बूत बहुमंज़िला घर भी हो सकते हैं।
अनौपचारिक बस्तियों को विभिन्न देशों में विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। चाहे वह ब्राज़ील की ‘फ़वेला’ हों, या भारतकी ‘बस्ती’, पाकिस्तान की ‘कच्ची आबादी’, मलेशिया की ‘कम्पुंग’, और वेनेज़ुएला तथा कोलंबिया की ‘बारियोस’व‘कम्युनास’ हों, इन अनौपचारिक बस्तियों में उतनी ही विविधता है जितनी विविधता इनके नामों में है। किंतु इनविविधताओं के बावजूद, इन सभी अनौपचारिक बस्तियों को अक्सर एक ही लड़ाई लड़नी पड़ती है। प्रदूषित वायु,अपर्याप्त आवासीय उपलब्धता, पानी, बिजली तथा सफ़ाई व्यवस्था की कमी, इन अनौपचारिक बस्तियों को ऐसीपर्यावरणीय व सामाजिक चुनौतियों का हमेशा ही सामना करना पड़ता है, जिनका कुप्रभाव समाज के सबसे निर्धन औरपिछड़े हुए वर्गों पर सबसे अधिक पड़ता है। यह देखते हुए कि विकासशील देशों में एक अरब से अधिक आबादी – दुनियाकी कुल नगरीय आबादी की एक चौथाई – अनौपचारिक बस्तियों में रहती है, यह कोई मामूली मुद्दा नहीं है।
एक नगर नियोजक व पर्यावरणीय स्वास्थ्य शोधकर्ता के रूप में मुझे विश्वास है, कि किसी अनौपचारिक बस्ती केनिवासियों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए व ऐसी बस्ती का निवासी होने के कलंक को समाप्त करने के लिए यहआवश्यक है, कि बस्ती के विकास के लिये ऐसे स्थान आधारित दृष्टिकोण को अपनाया जाए जिसमें बस्ती की भौतिकजटिलताओं और सामुदायिक संबंधों का ध्यान रखा गया हो। वैश्विक “सर्वोत्तम कार्यपद्धतियों” पर भरोसा करने वाले यास्थानीय संदर्भों की उपेक्षा करते हुए ऊपर से बनाई गई नीतियों को ज़बरदस्ती लागू करने के पारंपरिक दृष्टिकोणों सेभिन्न, सामुदायिक नेतृत्व की रणनीति की यही पहचान है कि इसमें स्थानीय निवासियों को आगे बढ़कर शामिल कियाजाता है और मौजूदा सामाजिक संबंधों को सुदृढ़ करते हुए बस्ती की भौतिक दशा में सुधार का प्रयास किया जाता है।
अनौपचारिक बस्तियों में स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ और इन बस्तियों में रहने का कलंक
भारतीय अनौपचारिक बस्तियों में उपलब्ध आवासों की विविधता
Credit: Julia King
संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक परिभाषा के अनुसार, ‘मलिन बस्ती’ अर्थात् ‘slum’ वह स्थान है जहां के निवासियों कोसीमित मात्रा में ही स्वच्छ पानी उपलब्ध है, या जहां सफ़ाई की व्यवस्था नहीं है, या जहां लोग निम्न गुणवत्ता के अतिसंकुलित मकानों में रहते हैं, या उनके आवासीय अधिकार असुरक्षित हैं, या उनके सामने यह सभी समस्याएँ एक साथ खड़ीहैं। मुझे ‘slum’ शब्द से यह आपत्ति भी है कि यह शब्द वहाँ के निवासियों के जीवन अनुभवों की विभिन्नताओं की उपेक्षाकरते हुए उन्हें एकसार व अधिकारविहीन करता है। यद्यपि मैं ‘slum’ या ‘मलिन बस्ती’ के स्थान पर ‘अनौपचारिक बस्ती’शब्दावली का प्रयोग कर रही हूँ, मुझे इन शब्दों के प्रयोग को लेकर चल रही बहस की जानकारी है और यह भी आभास है कि‘slum’ या ‘मलिन बस्ती’का लेबल कुछ देशों में, जिनमे भारत भी शामिल है, ऐसी किसी बस्ती को क़ानूनी पहचान का मौक़ादेता है। शहरी शोध संगठन Urbz ने ऐसी बस्तियों को ‘ होमग्रोव्न नेबरहुड ’ (homegrown neighbourhood) का नाम दियाहै। यह नाम इन बस्तियों के समुदायों को सशक्त करते हुए यहाँ के निवासियों की स्थानीय विशेषज्ञताओं को उजागर करता हैजिसके आधार पर इन बस्तियों की विविधतायें उत्पन्न हुईं।
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अनौपचारिक बस्तियाँ अधिकांशतः निचले क्षेत्रों में स्थित होती हैं जहां बाढ़ और जल भराव की अधिक आशंका होती है,या वह पहाड़ी इलाक़ो में अथवा प्रदूषण स्रोतों या नगरीय कूड़े के ढेर के नज़दीक होती हैं । इस कारणवश उनकोपर्यावरणीय प्रदूषण से उत्पन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं व प्राकृतिक आपदाओं की चुनौतियों का सामना अनुपात सेअधिक करना पड़ता है। सामान्यतः नगरीय संकाय ऐसी बस्तियों को विधिक स्वीकृति नहीं देते। इन बस्तियों में पानी,बिजली व सफ़ाई व्यवस्था की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होती जिसकी वजह से हैज़ा व पीलिया जैसी जल जनित बीमारियांयहाँ फैलती हैं, व्यक्तिगत सफ़ाई की कमी के कारण जीवाणु संक्रमण बढ़ता है, और अत्यधिक गर्मी के कारण स्वास्थ्यसंबंधी समस्यायें उत्पन्न होती हैं। और अनेकों अनौपचारिक बस्तियों में घनी आबादी रहती है, जहां बहुत अधिक भीड़ केकारण छूत की बीमारियों तो फैलती ही हैं, रहन सहन के निम्न स्तर की वजह से अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी उत्पन्नहोती हैं। संसाधनों की कमी तथा सार्वजनिक परिवहन, विद्यालयों व चिकित्सा केंद्रों की अनुपलब्धता के कारण वहाँ केनागरिकों के अवसर अत्यधिक सीमित हो जाते हैं। इन सब समस्याओं के बावजूद, नीति निर्माता व शासकीय जनकल्याणसंस्थाएं इन बस्तियों की ओर अपने भेदभावपूर्ण पूर्वाग्रह व इन बस्तियों की अनिश्चित विधिक स्थिति के कारण, यहाँ केनिवासियों की समस्याओं को उपेक्षित करते हैं, जिससे यहाँ निर्धनता बढ़ती है और जन स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है।
यह असमानताएं मेरे समक्ष और भी स्पष्ट हो गयीं जब मैंने शिवाजीनगर में जन समुदाय के साथ मिलकर काम किया।शिवाजीनगर मुंबई के सबसे निर्धन और अविकसित मोहल्लों में से एक है। यह भारत के एक सबसे बड़े नगरीय कूड़ानिस्तारण भू-भरण क्षेत्र की सीमा पर स्थित है जिस वजह से यहाँ गंभीर पर्यावरणीय स्वास्थ्य तथा वायु की गुणवत्ता कीसमस्यायें हैं। यह अत्यधिक भीड़ भाड़ वाला क्षेत्र है जहां आधे वर्ग मील में 600,000 लोग रहते हैं। इसके सापेक्ष न्यूयॉर्क जैसे घनी आबादी के नगर में एक वर्ग मील के क्षेत्र में लगभग 28000 लोग ही रहते हैं। शिवाजीनगर में लोगों को स्वच्छपानी बहुत कम उपलब्ध है व औसतन 145 लोगों के लिए केवल एक शौचालय है। एक तिहाई परिवारों की मासिक आय$100 या इससे कम है व इनमें से अनेक पिछड़े मुस्लिम या दलित (निम्न जाति) समुदायों से हैं।
मौजूदा सामुदायिक संरचनाओं को पहचानना
शिवाजीनगर, मुंबई में एक व्यवसायिक सड़क
Credit: Sabah Usmani
यद्यपि मैंने यहां अनौपचारिक बस्ती शब्द का प्रयोग किया है, किंतु इन समुदायों के साथ कार्य करते समय मुझे यह मालूमहुआ कि इन स्थानों पर अनेकों औपचारिक संगठन व व्यवस्थाएँ हैं। शिवाजीनगर में ‘स्ट्रीट फर्नीचर’ (जैसे सार्वजनिक बेंचया स्ट्रीट लाइट) के सुधार हेतु लघु प्रयासों का परीक्षण करने के उद्देश्य से नागरिकों, शिक्षाविदों व वास्तुशिल्पियों कीकार्यशाला के आयोजन के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि इस बस्ती में अनेक औपचारिक संगठन मौजूद हैं। यह संगठन विभिन्नप्रकार से काम करते हैं। यहाँ की सड़कों व गलियों की ग्रिड प्रणाली, जो सरकार द्वारा नियोजित पुनर्वास कॉलोनी के रूपमें बसाई गई इस बस्ती के इतिहास की ओर ध्यान आकर्षित करती है, शिवाजीनगर की औपचारिकता का उदाहरण है।यहाँ अनेकों सामुदायिक समूह व धार्मिक संस्थाएँ हैं जो स्थानीय श्रमिक समूहों के मध्य समन्वय का कार्य करती हैं,सामुदायिक उद्यानों व अन्य सार्वजनिक स्थानों का प्रबंधन करती हैं, तथा आवश्यकता के समय लोगों को सामाजिक ववित्तीय सहायता प्रदान करती हैं। ऐसे स्वतः संचालित सामुदायिक प्रयास अनौपचारिक बस्तियों की पहचान हैं, जिनकेमाध्यम से पिछड़े तबकों को आत्मनिर्णय द्वारा अपने जीवन को सुधारने हेतु मदद मिलती है।
शिवाजीनगर अनौपचारिक बस्ती में आयताकार समकोणीय सड़कों की ग्रिड
Credit: Google Earth, 2023
जैसे जैसे मैंने अन्य विभिन्न देशों में अपना शोध कार्य किया व वहाँ अनौपचारिक बस्तियों में रह रहे लोगों को जाना, मुझे यहमालूम हुआ कि इन स्थानों पर विभिन्न समस्याओं के निवारण हेतु वही प्रयास सफल हुए हैं जिनके केंद्र में स्थानीय समुदायोंको रखा गया है व जहां मौजूद संस्थाओं तथा संबंधों को महत्व दिया गया है। इसका जीता जागता उदाहरण लूचा दे लोसपोब्रेस (‘गरीबों की लड़ाई) नामक अनौपचारिक बस्ती है जो इक्वाडोर की राजधानी क्विटो में एक जीवंत इलाक़े के रूप मेंविकसित हो सकी है।
इस बस्ती की स्थापना के संबंध में एक डाक्यूमेंट्री फ़िल्म बनाते समय, मुझे यहाँ के एक सामुदायिक नेता, रोड्रिगोग्वालोटुन्या, से बात करने का मौक़ा मिला था जिसने मुझे इस बस्ती के इतिहास से अवगत कराया था। वर्ष 1964 मेंइक्वाडोर में कृषि सुधार क़ानून द्वारा बेगार प्रथा को समाप्त किया गया। इसके साथ ही देश में पेट्रोलियम उद्योग में तीव्रउछाल आया। इन दोनों कारणों से बड़ी संख्या में लोगों का ग्रामीण इलाक़ों से क्विटो की ओर प्रवास हुआ। क्योंकि क्विटो मेंसस्ते मकानों की बेहद कमी थी और भूस्वामित्व की व्यवस्थाएँ पक्षपातपूर्ण थीं, अतः प्रवासियों को अपने लिए आश्रय केअन्य विकल्प ढूँढने पड़े। इसी क्रम में दक्षिण पश्चिमी क्विटो में हज़ारों प्रवासियों ने पूर्व नियोजित रूप से एक hacienda(ज़मींदारी) की ख़ाली पड़ी ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर के अपने मकान निर्मित किए थे । इस प्रकार लूचा दे लोस पोब्रेस नामकइस बस्ती का जन्म हुआ। इस बस्ती में निम्न आय वर्ग के ऐसे बेघर परिवारों को आश्रय मिला जिनके पास अन्य कोईविकल्प नहीं था। अनेकों वर्षों तक विरोध प्रदर्शन तथा बहस मुबाहिसे के बाद क्विटो की नगरपालिका ने लूचा दे लोसपोब्रेस को विधिक मान्यता प्रदान की और बुनियादी संरचना और सामाजिक सेवाएँ उपलब्ध कराईं। यह कहानी हमेसामुदायिक नेतृत्व की सफलता का उदाहरण प्रस्तुत करती है, जो स्थानीय निवासियों के आत्म निर्णय और मज़बूती परआधारित है, जिनमे से अनेकों ने पहले छोटे छोटे एक मंज़िल के साधारण से आश्रय बनाये और फिर धीरे धीरे उनको बड़ाकरते करते अच्छी बहुमंज़िला इमारतों में बदल दिया।
यह ‘ इंक्रीमेंटल हाउसिंग’ दृष्टिकोण, जहां निवासीगण प्रारंभ में अपने छोटे छोटे मकान बनाते हैं और फिर एक लंबे समयअंतराल में इन छोटे मकानों में कुछ कुछ वृद्धि कर के इन्हें बड़ा करते हैं, निम्न आय वाली आबादी की आवासीयआवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक अच्छा और सस्ता विकल्प है। नगरीय बस्तियों के अध्ययन हेतु MIT के SpecialInterest Group for Urban Settlements के शोध कार्य के दौरान मैंने स्थानीय निवासियों के साक्षात्कार लिए औरबच्चों के लिए कार्यशालाओं का आयोजन किया जहां मैंने उनसे पूछा की उनको अपना अड़ोस पड़ोस कैसा लगता है।उन्होंने जो उत्तर मुझे दिये उनसे मुझे आभास हुआ कि उनको कितना गर्व है कि उन्होंने धीरे धीरे इस बस्ती में अपनेआवास और अपने उपयोग के लिए सार्वजनिक संरचनाएँ अपने ख़ुद के प्रयासों से निर्मित करीं, और इस प्रक्रिया के दौरानउन्होंने न केवल निर्माण कला में निपुणता हासिल की बल्कि सामुदायिक बंधनों को और मज़बूत किया।
लूचा दे लोस पोब्रेस की प्रारंभिक बस्ती, 1983, [LEFT] (credit: Rodrigo Gualotuña); आज का लूचा दे लोस पोब्रेस, 2016 (credit: Gabriel Muñoz Moreno)
सुधार करो, उखाड़ो नहीं
लूचा दे लोस पोब्रेस के निवासीगण एक मकान की छत बनाते हुए
Credit: Gabriel Muñoz Moreno
अतः अब प्रश्न यह उठता है कि अनौपचारिक बस्तियों में हम किस प्रकार लोगों के स्वास्थ्य और जीवन स्तर को सुधारसकते हैं? मेरे विचारानुसार नीति निर्माताओं और शोधकर्ताओं के लिए यह आवश्यक है कि वह उन लोगों की बात ध्यानसे सुने जो उन बस्तियों में रहते हैं। इसका मतलब है कि स्थानीय निवासियों को सभी शोध कार्यों में शामिल किया जानाचाहिए। इसका यह भी मतलब है कि जो स्थानीय प्रयास सफल हैं उनको पहचान कर ऊपर उठाया जाये व उनकोऔपचारिक नगरीय प्रशासन का अंग बनाया जाये। इसका यह भी मतलब है कि यह स्वीकार किया जाए कि कोई एकऐसा विकल्प नहीं होता जो सभी समस्याओं का निदान हो, कि यदि कोई एक प्रयास किसी एक बस्ती में सफल होता हैतो यह अनिवार्य नहीं कि वह अन्य बस्तियों में भी सफल होगा । अतः ज़रूरी है कि समुदायों व स्थानीय प्रशासन के मध्यऐसी मज़बूत साझेदारी स्थापित हो जिसके आधार पर मिल जुल कर स्थान आधारित नीतियाँ व कार्यक्रम बनाये जा सकेंजिनके माध्यम से बस्तियों और मोहल्लों में यथा स्थान सुधार किया जा सके, उनको पोषित और पल्लवित किया जा सके,और उनको उखाड़ने और ज़बरदस्ती निष्कासित करने की आवश्यकता ही न पड़े।
यह अनुमान है कि इस सदी के मध्य तक विश्व में लगभग तीन अरब लोग अनौपचारिक बस्तियों में रह रहे होंगे। फिर भीयह बस्तियां नीति निर्माताओं की नज़रों से ओझल हैं और नीतिगत निर्णयों में शामिल नहीं हैं। इन बस्तियों मेंपर्यावरणीय दशा, जनसंख्या, बीमारी एवं स्वास्थ्य संबंधी आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, जिस कारणवश यहाँ जनस्वास्थ्य कीचुनौतियों का सामना करने हेतु और सामुदायिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संसाधन उपलब्ध कराने की हमारीक्षमता सीमित हो जाती है।अनौपचारिक बस्तियों की संरचना जटिल होती है और हम को इस जटिलता को पहचानना होगा। स्थान आधारित शोधऔर सामुदायिक भागीदारी सहित नीति निर्माण ही इस जटिलता का समाधान हैं, जिस से भौतिक मूलभूत संरचना औरविधिक प्रतिनिधित्व की समस्या का उचित हल निकल सकता है। अनौपचारिक बस्तियों में एकरूपता नहीं होती। इनमेंअनेकों विविधताएँ हैं। शिवाजीनगर से लेकर क्विटो की लूचा दे लोस पोब्रेस तक, प्रत्येक बस्ती का अपना अलग इतिहासहै, अलग संदर्भ है, अलग चुनौतियाँ हैं, व अलग लोग हैं जिन्होंने इन बस्तियों को बनाया है और जिन्हें वह अपना घरकहते हैं।
और हम को इस जटिलता को पहचानना होगा। स्थान आधारित शोध और सामुदायिक भागीदारी सहित नीति निर्माण हीइस जटिलता का समाधान हैं, जिस से भौतिक मूलभूत संरचना और विधिक प्रतिनिधित्व की समस्या का उचित हल निकलसकता है। अनौपचारिक बस्तियों में एकरूपता नहीं होती। इनमें अनेकों विविधताएँ हैं। शिवाजीनगर से लेकर क्विटो की लूचादे लोस पोब्रेस तक, प्रत्येक बस्ती का अपना अलग इतिहास है, अलग संदर्भ है, अलग चुनौतियाँ हैं, व अलग लोग हैं जिन्होंनेइन बस्तियों को बनाया है और जिन्हें वह अपना घर कहते हैं।
सबा उस्मानी कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के मेलमैन स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ में पर्यावरण एवं स्वास्थ्य कार्यक्रम में पी.एच.डी. की छात्रा है।सबा के पास मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से नगर नियोजन में मास्टर्स व कोलंबिया यूनिवर्सिटी से सिविल इंजीनियरिंग (आर्किटेक्चर में माइनर के साथ) की बैचलर डिग्री है।
यह निबंध पर्यावरण न्याय में एजेंट्स ऑफ़ चेंज फ़ेलोशिप के लिए लिखा गया है। एजेंट्स ऑफ़ चेंज का ध्येय यह है कि विज्ञान व शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक रूप से पिछड़ी पृष्ठभूमि से आने वाले नेतृत्व को एक न्यायपूर्ण एवं स्वस्थ विश्व का सृजन करने हेतु आवश्यक समाधान ढूँढने के लिए सशक्त किया जाए।
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